Uma Mohan - Shiva Tandava Stotram Şarkı Sözleri

Uma Mohan şarkıcısının popüler şarkılarından Shiva Tandava Stotram şarkısının sözlerini sizlerle paylaşıyoruz. Uma Mohan - Shiva Tandava Stotram Şarkı Sözleri sitemize 31 Ekim 2019 Perşembe tarihinde admin tarafından eklenmiştir.

Uma Mohan - Shiva Tandava Stotram Şarkı Sözleri

ॐ ।। शिव ताण्डव स्तोत्रम् ।। ॐ

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं,
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।।१।।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी,
विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि ।

धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके,
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम:।।२।।

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस्,
फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे ।

कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि,
क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।३।।

जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा,
कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे ।

मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे,
मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ।।४।।

ॐ नमः शिवायः
सदा शिवम् भजाम्यहम्,
सदा शिवम् भजाम्यहम्
ॐ नमः शिवायः

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर,
प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः ।

भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक,
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ।।५।।

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा,
निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् ।

सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं,
महाकपालिसम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ।।६।।

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल, द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके ।

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक,
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ।।७।।

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्त,
कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।

निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ।।८।।



प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा,
वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ।।९।।

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ।।१०।।



जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस,
द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ।।११।।

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ।।१२।।

कदा निलिम्पनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।१३।।

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ।।१४।।

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